“निकलो यहां से। वो रहा दरवाज़ा। बाहर जाओ। और कभी यहां दोबारा मत आना।” बी.आर.चोपड़ा ने गुस्सा होकर पंकज धीर से कहा। पंकज धीर को उनके ऑफिस से बाहर निकाल दिया गया। चोपड़ा साहब के ऑफिस के बाहर पंकज धीर जब आए तो कईयों ने इनसे कहा कि ये क्या कर रहे हो? इतनी छोटी सी बात है। मान जाओ। कुछ दिन बाद सब पहले जैसा हो जाएगा। लेकिन पंकज धीर ने साफ इन्कार कर दिया। और ये वहां से चले गए। ये किस्सा महाभारत की कास्टिंग से जुड़ा है। कम ही लोग लोग जानते होंगे कि पंकज धीर साहब को डॉक्टर राही मासूम रज़ा व पंडित नरेंद्र शर्मा जी ने पहले अर्जुन के रोल के लिए चुना था। पंकज धीर तब बहुत खुश हुए थे। पंकज धीर ने कॉन्ट्रैक्ट भी साइन कर लिया। इनके दोस्तों व रिश्तेदारों में बात फैल गई थी कि पकंज तो महाभारत में अर्जुन बनने जा रहे हैं। लगभग दो महीने ऐसे ही गुज़र गए।
जब तीसरा महीना आया तो एक दिन बी.आर.चोपड़ा ने पंकज धीर को मिलने बुलाया। पंकज जी जब उनसे मिलने उनके ऑफिस आए तो चोपडा साहब ने कहा,”बरखुरदार, ये रोल निभाने के लिए तुम्हें अपनी मूछें कटानी होंगी।” पहले तो पंकज धीर बड़े हैरान हुए। लेकिन फिर साफ-साफ बोले,”मैं ये नहीं कर पाऊंगा सर।” बी.आर.चोपड़ा को पंकज धीर का यूं मना करना बड़ा अजीब लगा। उन्होंने वजह पूछी तो पंकज जी बोले,”मेरे चेहरे का बैलेंस कुछ ऐसा है कि अगर मैंने मूंछ हटा दी तो मेरा चेहरा अच्छा नहीं लगेगा।” तब बी.आर.चोपड़ा बोले,”तुम एक्टर हो कि क्या हो? इतने बड़े रोल के लिए एक मूंछ साफ नहीं करा सकते?” पंकज धीर ने फिर वही कहा,”मैं मूंछ साफ नहीं कर सकू्ंगा सर।” तभी पंकज धीर पर बी.आर.चोपड़ा भड़के थे और उन्होंने पंकज धीर को ऑफिस से निकल जाने को कहा था।
अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जब बी.आर.चोपड़ा पंकज धीर से इतने नाराज़ हो गए थे तो फिर उन्होंने पंकज धीर को कर्ण का किरदार क्यों दिया? तो इसकी कहानी कुछ यूं है कि कुछ महीने बाद एक दिन फिर से बी.आर.चोपड़ा ने पंकज धीर साहब को फोन किया। उन्होंने पंकज जी को अपने दफ्तर आने को कहा। जब पंकज धीर उनसे मिलने पहुंचे तो वो बोले,”कर्ण का रोल करोगे?” इन्होंने फौरन चोपड़ा साहब से पूछा,”मुझे मूंछ तो नहीं काटनी होगी ना सर?” बी.आर.चोपड़ा ने इन्हें बताया कि मूंछ काटने की ज़रूरत नहीं होगी इस रोल के लिए। पंकज जी खुशी-खुशी चोपड़ा साहब से बोले,”ज़रूर। मैं ये रोल ज़रूर निभाऊंगा।” इस तरह एक बार फिर से पंकज धीर जी को महाभारत में एंट्री मिली।
आज पंकज धीर जी का जन्मदिन है। पकंज धीर जी आज 65 साल के हो गए हैं। 9 नवंबर 1959 को पंकज धीर जी का जन्म हुआ था। अब पंकज जी मानते हैं कि उस समय उन्होंने जो अपनी मूंछों की वजह से अर्जुन का किरदार ठुकरा दिया था, वो इनकी एक बड़ी गलती थी। क्योंकि बतौर एक्टर इन्हें किसी भी तरह के गेटअप के लिए हमेशा रेडी रहना चाहिए। लेकिन चूंकि तब ये नादान थे तो इन्हें ये बात तब समझ में नहीं आती थी। पकंज धीर जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए महाभारत शो के इनके किरदार “कर्ण” से जुड़ी और कुछ रोचक बातें भी जान लेते हैं।
कर्ण का किरदार निभाने के बाद पंकज धीर देश का एक बहुत लोकप्रिय चेहरा बन गए थे। एक इंटरव्यू में पंकज धीर बताते हैं कि उस ज़माने में एक पॉप्युलैरिटी पोल हुआ करता था। उस पोल में राजीव गांधी पहले नंबर पर थे। अमिताभ बच्चन दूसरे नंबर पर थे। और तीसरे नंबर पर पंकज धीर हुआ करते थे। लोकप्रियता का आलम ये था कि देश के दूर-दराज के गावों में भी अगर पंकज धीर पहुंच जाते थे तो लोग इन्हें बहुत प्यार व सम्मान देते थे। लोगों को इनका असली नाम तक पता नहीं होता था। सब इन्हें कर्ण के नाम से ही जानते थे।
पकंज धीर कहते हैं कि जब उन्हें कर्ण के किरदार के लिए साइन किया गया था तब वो कर्ण को सही से जानते ही नहीं थे। चूंकि वो मुंबई में पले-बढ़े थे और अंग्रेजी मीडियम में उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई थी तो ना तो उन्हें संस्कृत का ज़रा भी ज्ञान था। और ना ही भारतीय ग्रंथों से वो बहुत अधिक परीचित थे। इसलिए जब पहली दफा डॉक्टर राही मासूम रज़ा ने पंकज धीर को इनके डायलॉग्स दिए तो इनके पसीने छूट गए। पंकज धीर राही साहब से मिले और अपनी मुश्किल उन्हें बताई। राही मासूम रज़ा ने इनसे कहा,”एक काम करो बेटा। एक अखबार आता है हिंदी में जिसका नाम है नवभारत टाइम्स। उसे खरीदो और घर पर ज़ोर-ज़ोर से उसे पढ़ो। ताकि तुम हिंदी के अभ्यस्त हो सको और तुम्हारी ज़ुबान खुले।”
डॉक्टर राही मासूम रज़ा के कहने पर पंकज धीर ने अखबार को वैसे ही पढ़ना शुरू किया। साथ ही साथ उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी की रश्मिरथी व शिवाजी सावंत की मृत्युंजय नामक दो किताबें भी पढ़ी। ये दोनों किताबें पढ़ने का सुझाव भी राही जी ने ही पंकज धीर को दिया था। राही मासूम रज़ा जी के ये दोनों सुझाव पंकज धीर के बहुत काम आए। कैमरे के सामने कर्ण के किरदार को पोर्ट्रे करने में उन्हें बड़ी मदद मिली इस अभ्यास से। पंकज धीर कहते हैं कि महाभारत के अपने किसी भी दृश्य में उन्होंने एक दफा भी पलकें नहीं झपकाई थी। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि कर्ण एक सूतपुत्र था। इसलिए राजा-महाराजाओं के बीच में बैठते वक्त वो बहुत चौकन्ना रहता होगा। वो पलकें नहीं झपकाता होगा।
एक और एक्सपैरीमेंट जो पंकज धीर जी ने कर्ण के रोल से किया था वो ये कि, अपने संवादों में वो बहुत ज़ोर से नहीं बोलते थे। क्योंकि महाभारत के जिन अन्य दो किरदारों के बीच में उनका अधिकतर वक्त गुज़रता था, वो दोनों ही बहुत तेज़ बोलने वाले किरदार थे। वो किरदार थे दुर्योधन और शकुनि मामा। ऐसे में अगर कर्ण भी ज़ोर से बोलता तो वो अलग नहीं लगता। पंकज धीर ने कर्ण को ज़रा धीमे अंदाज़ में बोलने वाले शख्स के तौर पर प्रस्तुत किया। उनका ये प्रयोग बहुत सफल भी रहा। कर्ण का किरदार बहुत खिलकर सामने आया ऐसा करने से।
महाभारत में जब कर्ण के किरदार की मृत्यु वाला एपिसोड आया तो उसके बाद दर्शकों को कर्ण की बहुत याद आने लगी। ये वो वक्त था जब अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। एक दिन अर्जुन सिंह जी ने बी.आर.चोपड़ा के ऑफिस में फोन किया। उन्होंने पूछा कि कर्ण का कैरेक्टर निभाने वाला एक्टर कहां हैं? बी.आर.चोपड़ा ने उनसे पूछा कि बात क्या है? अर्जुन सिंह जी ने उन्हें बताया कि बस्तर ज़िले में कुछ आदिवासियों से मिलने के लिए उन्हें भेजना होगा। पंकज धीर भोपाल पहुंचे। वहां से हैलिकॉप्टर के ज़रिए इन्हें बस्तर ले जाया गया। और जब पंकज धीर आदिवासियों के बीच पहुंचे तो बड़े हैरान हुए। पंकज धीर बताते हैं कि कोई चार-पांच हज़ार आदमी थे। उन सभी ने महाभारत में कर्ण के मरने के दुख में अपना सिर मुंडवा लिया था।
उस वक्त पंकज धीर को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो हैरत में थे। और सोच रहे थे कि हमारे देश में ऐसा भी होता है? जब पंकज धीर उन लोगों के बीच पहुंचे तो वो लोग बहुत खुश हुए। जो भी इन्हें देखता, वो हाथ जोड़ लेता। पंकज जी ने उन्हें बताया कि मैं एकदम सही सलामत हूं। डेथ सिर्फ सीरियल में हुई है। बाद में उन लोगों ने पंकज धीर जी को चांदी में तौला था। #PankajDheer #mahabharat #karna #brchopra